Friday, June 27, 2008

भ्रम ही सही

ज़रूरी है वह नितांत
जो दे उष्मा
भरे उमंग
करे उर्जा संचरण जीवन में

ज़रूरी है जैसे
'आखिरी पत्ते' का भ्रम अन्तिम पलों में
तिनके के सहारे का भ्रम
ज़रूरी है डूबते को जैसे

ज़रूरी है जैसे
लैंप पोस्ट से आंच का भ्रम
फुटपाथों के लिए जमती रातों में
चाँद के ' मामा ' होने का भ्रम ज़रूरी है
बचपन को जैसे

जैसे ज़रूरी है
तुम्हारे अपने होने का भ्रम
मेरे जीने के लिए
चाँद को पा लेने का भ्रम
ज़रूरी है चकोर को जैसे
भ्रम ही सही
ज़रूरी है वह नितांत । ।

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