Friday, June 27, 2008

सम्भव है !

तुम्हारे अपनों में
हो मेरी पहचान धुंधली , अस्पष्ट
सम्भव है !
तुम्हारे सपनों में
हो मेरी सूरत अनजानी , अनचाही
सम्भव है !

पर साथी !
जीवन पथ तुम्हारे
होंगे कंटकित कभी
मेरे पाँव बढ़ेंगे
तुम्हारे साथ सबसे पहले ।
जीवन वन तुम्हारे
होंगे यदि निर्जन कहीं
मेरे हाथ छेडेंगें सृजन के साज़
तुम्हारे लिए सबसे पहले ।

और सहपथिक !
चहुन्दिशि फूलेगी सरसों जब
खुशियाँ भरेंगी तुम्हे अंक में
कल्पनाएँ होंगी सहज साकार
सजेंगें स्मित पुष्प पथ में
तुम्हारे अपनों की बढती भीड़ में
खो जाऊंगा
किसी अदृश्य धुंधलके में
और अस्पष्ट होकर
सम्भव है !

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