जब- जब प्रहार हुए
कठोरतर होता रहा मैं
और मेरे अन्दर का पहाड़
दरकता रहा कहीं
भीत सम प्रतिपल ।
जब -जब फुहार पड़ी नम
संकुचित होता रहा मैं
और मेरे अन्दर का लावा
पिघलता रहा कहीं
मोम सम प्रतिपल ।
प्रहार और फुहार
दोनों लिए नवजीवन अंश
रीते घट भरना है
स्व -पथ चुनना है
टुकड़े-टुकड़े बिखरने का
या जलते -जलते पिघलने का । ।
चंद ग़ज़लें -
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चंद ग़ज़लें -
१ बेवज़ह धूप में हम चल पड़े घर से क्यूँकर ,
हर दफा दर को शिकायत रहे सर से क्यूँकर ।
आंसुओं से कोई पत्थर नहीं पिघला करता,
दिल को समझाने में यह...
13 years ago
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