यह नही कहता प्रिये तुम रूप का उपहार दे दो ,
यह नही कहता शुभे निज गंध पर अधिकार दे दो ।
दे सको तो पाँव के छाले व्यथा विस्तार दे दो ,
दे सको निज घाव दे दो और दर्द अपार दे दो । ।
चंद ग़ज़लें -
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चंद ग़ज़लें -
१ बेवज़ह धूप में हम चल पड़े घर से क्यूँकर ,
हर दफा दर को शिकायत रहे सर से क्यूँकर ।
आंसुओं से कोई पत्थर नहीं पिघला करता,
दिल को समझाने में यह...
13 years ago