Friday, June 27, 2008

चलो ! मेरे पुनर्जन्म तक

तुमने मारा है
डुबाकर

अनंत में बहुत गहरे
बांधकर द्रवित दृगों में
लगाकर
पलकों के पहरे
मारा है अन्तर -पशु को मेरे ।

तुमने किया जो अकस्मात यह छल
नव जागृत निर्बल मन हुआ विकल
सुनो ! अब वारो दंड
लेकर शपथ अखंड
चलो ! अब साथ -साथ थाम हाथ
मेरे ही अनवरत ।

छुपाकर अन्य पशुओं से
खड़े जो थाह में निशि भर
बचाकर तड़ित से , घन से
अड़े जो राह में दुस्तर

जगा कर लौ निशा तक
निभाकर अंध -तम से उषा तक
चलो ! मेरे मनुष्य होने तक
चलो ! मेरे पुनर्जन्म तक । ।

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