अब सजाने को न कोई भीत होगी।
अब निभाने को न कोई रीत होगी॥
आपको लो अब न होगा थामना ,
लड़खड़ाऊँ या बहक जाऊं अगर।
अब न होगी आपकी अवमानना ,
टूट जाऊँ या बिखर जाऊं अगर ॥
अब न कोई हार कोई जीत होगी।
अब निभाने को न कोई रीत होगी॥
अब सताएंगी नहीं वो हिचकियाँ,
याद तेरी आँख भर जाए अगर।
अब बुलाएंगी न मेरी सिसकियाँ ,
रूठी रातें जी को तड़पायें अगर॥
अब न जागी रात भीगी सीत होगी।
अब निभाने को न कोई रीत होगी॥
चंद ग़ज़लें -
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चंद ग़ज़लें -
१ बेवज़ह धूप में हम चल पड़े घर से क्यूँकर ,
हर दफा दर को शिकायत रहे सर से क्यूँकर ।
आंसुओं से कोई पत्थर नहीं पिघला करता,
दिल को समझाने में यह...
13 years ago