Sunday, July 6, 2008

न कोई रीत होगी !

अब सजाने को न कोई भीत होगी।
अब निभाने को न कोई रीत होगी॥

आपको लो अब न होगा थामना ,
लड़खड़ाऊँ या बहक जाऊं अगर।
अब न होगी आपकी अवमानना ,
टूट जाऊँ या बिखर जाऊं अगर ॥

अब न कोई हार कोई जीत होगी।
अब निभाने को न कोई रीत होगी॥

अब सताएंगी नहीं वो हिचकियाँ,

याद तेरी आँख भर जाए अगर।
अब बुलाएंगी न मेरी सिसकियाँ ,
रूठी रातें जी को तड़पायें अगर॥

अब न जागी रात भीगी सीत होगी।
अब निभाने को न कोई रीत होगी॥