Sunday, June 29, 2008

छूं सकूँ मैं स्वयं को ...


खोजता अस्तित्व अपना मैं
तुम्हारे नीलाभ आँखों की
अतल गहराइयों में
शांत झील के विकल तल में
मोतियों के साम्राज्य तक तुम्हारे
खोजता मैं स्वयं को
प्रतिपल .....
कामनाएं डूब जाने की
विफल........
कोशिशें थाह पाने की अथक
निष्फल.....
छलक जायेंगे कभी
यदि थाम कर संवेदना कोई
या बहक जायेंगे ही
छूकर विगत की वेदना सोई
सहेजून्गा युगल -कर में
सुरक्षित
जल भरे मुक्तादलों को
विगत स्मृति से भरे स्वप्निल पलों को
न होने दूंगा व्यर्थ निश्चित
पा सकूँ मैं स्वयम को,
शायद छूं सकूँ मैं स्वयं को ...