Friday, June 27, 2008

काव्य दिया तुमने

देव ने पूछा -
करते हो विश्वास
रखते हो श्रद्धा अपार,
चढाते हो पुष्प नित
सम्पति भी हो उदार।
नियमित संकल्प साध
भूल कर सब ऋतु प्रहार ,
बोलो किस आशा से
रहे तुम पथ बुहार ।
कहो वत्स !
निर्मल सेवाओं का पाया क्या प्रतिफल ?

खोने और पाने का प्रश्न सदा मरता है ,
निर्मल विश्वास जहाँ शुचिता संग बहता है ।
हारतें हैं तर्क सभी श्रधा के सम्मुख ,
पाने का प्रश्न सदा स्वारथ - हित पलता है । ।

वाणी रही मौन
छलक पड़े आंसू संवत- स्वर बोले !
तुमने दिया लक्ष्य
मार्ग दिया तुमने
तुमने दिए पर
आकाश दिया तुमने
तुमने दी दृष्टि
प्रकाश दिया तुमने
तुमने दी करुना
आधार दिया तुमने
आखों में सागर , धरती हृदय में
जीवन को हे कवि ! काव्य दिया तुमने ।।

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