Saturday, June 28, 2008

अनन्य तुम्हारे लिए

चाहत के लिए
ज़रूरी है
यदि दर्शन
मिलन या छुअन
तो समझ लो साफ़ -साफ़
मैं तुम्हें नही चाहता।

ज़रूरी है
यदि मनन
तपन या समर्पण
तो समझ लो बस इतना
वह है
अगाध असीम
अनन्य तुम्हारे लिए।।