Saturday, July 12, 2008

सबकुछ तुम्हारा दिया !

दुस्तर शूल -पथ पर होकर व्यथित
मैंने चाहा तुम्हारा हाथ ,
तुमने 'फूल ' की शर्त रख दी।
भूलकर लोहित - पग
सुखाकर नामित-दृग
तपाकर स्वयं को मैंने सजाये 'फूल ' मुस्काते
तुमने शर्त रख दी 'सुगंध ' की।


कम्पित अंध -पथ पर होकर भ्रमित
मैंने माँगा तुम्हारा हाथ ,
तुमने 'धूप' की शर्तरख दी ।
भूलकर विषम - सम
चीरकार अक्षत - तम
जलाकर स्वयं को मैंने जगाये दीप इठलाते
तुमने शर्त रख दी 'उष्मा ' की।


दग्ध मरुपथ पर होकर तपित
मैंने देखा स आस ,
तुने 'छाँव' की शर्त रख दी।
बहलाकर प्यासा मन
बिसराकर झुलसा तन
गलाकर स्वयं को मैंने उगाए ' वटवृक्ष ' इतराते
तुमने शर्त रख दी ; हिमता ' की।


देखो आज सबकुछ है , सबकुछ है मेरे साथ
फूल भी - सुगंध भी , मलयज - मरंद भी
धूप भी - छाँव भी , सहरा भी - ठांव भी
शीतलता - शान्ति भी ,चन्द्रमा - रवि कांति भी
सबकुछ है मेरे साथ , सबकुछ तुम्हारा दिया ।



Sunday, July 6, 2008

न कोई रीत होगी !

अब सजाने को न कोई भीत होगी।
अब निभाने को न कोई रीत होगी॥

आपको लो अब न होगा थामना ,
लड़खड़ाऊँ या बहक जाऊं अगर।
अब न होगी आपकी अवमानना ,
टूट जाऊँ या बिखर जाऊं अगर ॥

अब न कोई हार कोई जीत होगी।
अब निभाने को न कोई रीत होगी॥

अब सताएंगी नहीं वो हिचकियाँ,

याद तेरी आँख भर जाए अगर।
अब बुलाएंगी न मेरी सिसकियाँ ,
रूठी रातें जी को तड़पायें अगर॥

अब न जागी रात भीगी सीत होगी।
अब निभाने को न कोई रीत होगी॥



Saturday, July 5, 2008

दर्द अपार दे दो !

यह नही कहता प्रिये तुम रूप का उपहार दे दो ,
यह नही कहता शुभे निज गंध पर अधिकार दे दो ।
दे सको तो पाँव के छाले व्यथा विस्तार दे दो ,
दे सको निज घाव दे दो और दर्द अपार दे दो । ।

Tuesday, July 1, 2008

जतन करके तो देंखें

अग्निवन के बाद उपवन भी मिलेंगे
हम ज़रा सा पाँव धरने के जतन करके तो देखें ।
आंसुओं की बात क्या है घाव भी हंसनें लगेंगें
हम ज़रा सा मुस्कुराने के जतन करके तो देखें । ।