Tuesday, August 5, 2008

साथ क्या मेरे जलोगे?

शूल - पथ का पथिक हूँ, तुम साथ क्या मेरे चलोगे ?
मैं व्यथा का अश्रुजल, तुम साथ क्या मेरे बहोगे ?

दौर है आकाश के यशगान का वे स्वर मिलालें
वे हवा के साथ होकर तम-घटा के गीत गा लें
मैं अकिंचन दीप हूँ, तुम साथ क्या मेरे जलोगे ?

जल रहीं सारी दिशाएं वे सुनहली शाम कहलें
वे हमारी बेबसी को आत्म गौरव गान कहलें
मैं पिघलती हिम-शिला, तुम साथ क्या मेरे गलोगे ?

मैं समंदर से निकलकर शून्य होना चाहता हूँ
मैं अधिकतम से सिमटकर न्यून होना चाहता हूँ
द्वेष का अवसान हूँ, तुम साथ क्या मेरे ढलोगे ?