शूल - पथ का पथिक हूँ, तुम साथ क्या मेरे चलोगे ?
मैं व्यथा का अश्रुजल, तुम साथ क्या मेरे बहोगे ?
दौर है आकाश के यशगान का वे स्वर मिलालें
वे हवा के साथ होकर तम-घटा के गीत गा लें
मैं अकिंचन दीप हूँ, तुम साथ क्या मेरे जलोगे ?
जल रहीं सारी दिशाएं वे सुनहली शाम कहलें
वे हमारी बेबसी को आत्म गौरव गान कहलें
मैं पिघलती हिम-शिला, तुम साथ क्या मेरे गलोगे ?
मैं समंदर से निकलकर शून्य होना चाहता हूँ
मैं अधिकतम से सिमटकर न्यून होना चाहता हूँ
द्वेष का अवसान हूँ, तुम साथ क्या मेरे ढलोगे ?
चंद ग़ज़लें -
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चंद ग़ज़लें -
१ बेवज़ह धूप में हम चल पड़े घर से क्यूँकर ,
हर दफा दर को शिकायत रहे सर से क्यूँकर ।
आंसुओं से कोई पत्थर नहीं पिघला करता,
दिल को समझाने में यह...
13 years ago